मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने जीवन में सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को अनुभूत करता है। वह इन अनुभवों के माध्यम से समाज को समझता है तथा उनके अनुसार स्वयं को व्यवस्थित करता चला जाता है। यह भी एक सच है कि सामाजिक जीवन के सभी पक्षों को व्यक्ति अपने जीवन काल में प्रत्यक्ष नहीं कर सकता। व्यक्ति का दायरा अपने आवास के आस-पास तक ही सिमटा रहता है। सूचना प्रौद्योगिकी से पूर्व तक यह कथन और भी अधिक सार्थक था। व्यक्ति अधिकाधिक जानकारियां व अनुभव लेना चाहता है। इस हेतु सूचना प्रौद्योगिकी से पूर्व काल तक वह केवल साहित्य पर निर्भर था। आज भी साहित्य हमारे जीवन का महत्वपूर्व हिस्सा है। साहित्य संभवतः मनुष्य की अपनी भावी पीढ़ियों के लिए छोड़ी गई अनुभवों की गट्ठरी है, जो उनकी संतानों का मार्ग दर्शन करती है। साहित्य की अनेक विधाएं है। इन विधाओं में एक महत्त्वपूर्ण विधा कहानी है जो युगों युगों से भावी पीढ़ियों के शिक्षण का प्रमुख आधार रही है। कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसमें कहानियां नहीं पाई जाती है। संपूर्ण साहित्य ही मनुष्य को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, इसमें भी कहानी कला वह विधा है, जिसे मनुष्य को आरंभिक काल से ही प्रभावित किया है।
शब्दकोशः हिन्दी साहित्य, समाज, सूचना प्रौद्योगिकी, आरंभिक काल, शिक्षण, कहानी विधा।