कला शब्द, अनेक तरह के मानव कार्य -व्यापारों के लिए, बिना किसी विवेक के प्रयुक्त किया जाता रहा है- मानव के उदात्त उद्यमों से लेकर केश-विन्यास या शतरंज खेलने के कौशल तक के लिए। इसलिए कोई एक परिभाषा इस शब्द को पूरी तरह स्पष्ट नही कर पाती। यदि हम कला शब्द को उसके स्वाभाविक क्षेत्र तक ही सीमित रखें यानी संगीत, साहित्य, नाटक, चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला और हस्तकला तक, तब भी कोई संतोषजनक उत्तर नही मिलता। कला तथा सौंदर्यशास्त्र के लेखक इस प्रश्न का कोई निश्चयात्मक उत्तर पाने मे असमर्थ रहे हैं। अतः कला की किसी मान्य परिभाषा के बिना, और किसी नई परिभाषा को गढने की परेशानी से बचते हुए, हम इस अर्मूतन से बाहर निकलें और यह जानने की कोशिश करें कि कोई कलाकृति कैसे अस्तित्व में आती है।