विश्वशक्ति के रूप में अपने शिखर पर आरूढ़ तत्कालीन इंग्लैण्ड की ओर लोग भय मिश्रित कौतूहल की दृष्टि से देखते थे। सत्ता और वैभव के इस अधिष्ठान में भारत जैसे निर्धन व पराधीन देश से आए गैरिकवसन सन्यासी के लिए प्रारंभ में उदासीनता कोई आश्चर्य की बात नहीं थी किन्तु लन्दन का प्रबुद्ध वर्ग शीघ्र ही इस हिन्दू सन्यासी’ की प्रतिभा व मौलिकता का लोहा मान गया। उनके धार्मिक दृष्टिकोण की सार्वजनीनता, भावों की उदात्तता एवं उनके शार्दूल व्यक्तित्व से प्रभावित होने वाली श्रोता मंडली में मार्गरेट एलिजाबेथ नॉबुल अग्रणी थीं जो उस समय लंदन के बौद्धिक क्षेत्र में अपना स्थान व पहिचान बना चुकी थी। मार्गरेट एलिजाबेथ नॉबुल का भगिनी निवेदिता के रूप में स्वामी विवेकानन्द के मिशन के प्रति सर्वतोभावेन समर्पण बीसवीं सदी के धार्मिक इतिहास की विस्मयजनक घटना है। यह न केवल गुरू शिष्य परम्परा का उदात्ततम रूप था अपितु भावरूपान्तरण के सिन्धु संतरण की कष्टसा/य साधना भी थी। मार्गरेट एलिजाबेथ नॉबुल का निवेदिता में परिणत होना अत्यन्त दुःसा/य कार्य था।
शब्दकोशः निवेदिता, शिष्यत्व, धर्मपरायण, विश्वशक्ति, धार्मिक इतिहास।