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लोक की वाणी, नारी की चेतनाः मैथिली और भोजपुरी लोकगीतों में स्त्री अनुभव का तुलनात्मक विश्लेषण

नीलम झा एवं डॉ. रितु शर्मा (Neelam Jha & Dr. Ritu Sharma)

यह लेख मैथिली और भोजपुरी लोकगीतों के माध्यम से नारी चेतना के उद्भव, स्वरूप और विकास का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इन गीतों में स्त्रियाँ केवल सांस्कृतिक पात्र नहीं, बल्कि सामाजिक अनुभूतियों, प्रतिरोधों और भावनात्मक अनुभवों की संवाहक हैं। लेख चार भागों में विभाजित हैः पहले भाग में लोकगीतों की प्रकृति और स्त्री स्वरूप की पड़ताल की गई है; दूसरे भाग में विवाह, मातृत्व और पारिवारिक संदर्भों में स्त्री-अनुभव की विवेचना की गई है; तीसरे भाग में प्रतिरोध के स्वर और नारीवादी दृष्टिकोण से पुनर्पाठ किया गया है; तथा अंतिम भाग में समकालीन संदर्भ में इन गीतों की भूमिका और तुलनात्मक स्वरूप का विश्लेषण प्रस्तुत है। इस अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जहाँ मैथिली लोकगीत अधिक सांस्कृतिक सलीके और कोमल प्रतिरोध की शैली में स्त्री अनुभव को उकेरते हैं, वहीं भोजपुरी लोकगीत अधिक संघर्षशील, प्रवासी और मुखर चेतना को व्यक्त करते हैं। डिजिटल युग में भी यह चेतना विलुप्त नहीं हुई है, बल्कि नया रूप लेकर उभरी है। यह आलेख लोक साहित्य में स्त्री अध्ययन की समकालीन आवश्यकता की ओर संकेत करता है और यह तर्क रखता है कि लोकगीत मात्र सांस्कृतिक परंपरा नहीं, अपितु स्त्री-स्वर की जीवंत राजनीतिक और सामाजिक उपस्थिति हैं। 

शब्दकोशः नारी चेतना, मैथिली लोकगीत, भोजपुरी लोकगीत, तुलनात्मक लोक साहित्य, लोक सांस्कृतिक विमर्श, स्त्री अनुभव, नारीवादी दृष्टिकोण, प्रतिरोध, समकालीन लोकधारा, महिला सशक्तिकरण।
 


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