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डिजिटलीकरण और सामाजिक पहचानः शहरी भारत के युवाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन

पुष्पा मीणा (Pushpra Meena)

डिजिटलीकरण ने आधुनिक युग में सामाजिक और सांस्कृतिक संरचनाओं में एक क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। विशेषकर शहरी भारत में युवा वर्ग के जीवन में डिजिटल मा/यमों का प्रभाव गहरा और व्यापक हो गया है। यह रिसर्च शहरी भारत के युवाओं के सामाजिक पहचान के निर्माण और पुनर्निर्माण में डिजिटलीकरण की भूमिका का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करता है। युवाओं की डिजिटल सहभागिता, अर्थात सोशल मीडिया, ऑनलाइन समुदाय, और डिजिटल संचार के मा/यम से उनके व्यक्तित्व, मूल्य, और सामाजिक संबंधों में आये परिवर्तन इस शोध का मुख्य केंद्र हैं। न्तइंद लवनजी के लिए डिजिटलीकरण न केवल संवाद के नए मापदंड खोलता है, बल्कि उनके सामाजिक पहचान के निर्माण में भी क्रियाशील होता है। यह शोध यह पता लगाने का प्रयास करता है कि किस तरह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्तियां, डिजिटल संस्कृतियां, और ऑनलाइन समुदाय युवाओं के आत्म-अधिकार, सांस्कृतिक पहचान, और सामाजिक समूहों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रभावित करते हैं। इसके साथ ही, यह अ/ययन यह भी जांचता है कि कैसे डिजिटल दुनिया में युवाओं की पहचान पारंपरिक सामाजिक संस्थाओं जैसे परिवार, जाति, धर्म, और क्षेत्रीयता से संबंध बनाए रखती है या उनसे अलग होती है। द्रव्य प्रतिनिधित्व के लिए शहरी क्षेत्रों के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले युवाओं का चयन किया गया है, जिससे विविधता में एक व्यापक तस्वीर मिल सके। डेटा डिजिटल सहभागिता, फोकस ग्रुप चर्चा, और गहन साक्षात्कार के अवलोकन के मा/यम से प्राप्त किया गया है। इस शोध में यह देखा गया कि युवाओं को अपनी सामाजिक पहचान को अधिक लचीले, बहुआयामी, और निरंतर विकसित होने योग्य बनाने में डिजिटल तकनीकों ने सक्षम किया है। इसके अलावा, सोशल मीडिया ने समान रुचि, अनुभव और संघर्ष वाले समूहों से युवाओं को जुड़ने के नए अवसर प्रदान किए हैं, जो पारंपरिक सामाजिक सीमाएँ पार करते हैं। हालांकि, डिजिटलीकरण के इस प्रसार के साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी सामने आई हैं, जैसे कि डिजिटल असमानता, ऑनलाइन पहचान की अस्थिरता, और डिजिटल निगरानी के कारण उत्पन्न सामाजिक दबाव। यह अ/ययन इस द्वैत को भी रेखांकित करता है कि कैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म युवाओं को सशक्त बनाते हुए भी कभी-कभी उनके लिए पहचान संकट और सामाजिक अलगाव के कारक बन सकते हैं। अंततः, यह शोध शहरी भारत के युवाओं की सामाजिक पहचान की जटिलताओं और विविधताओं को समझने में डिजिटलीकरण के योगदान को उजागर करता है। यह सामाजिक विज्ञान और डिजिटल मीडिया अ/ययन के क्षेत्र में नयी दृष्टि प्रदान करता है और नीतिगत स्तर पर युवा विकास, डिजिटल शिक्षा, तथा सामाजिक समावेशन के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
शब्दकोशः डिजिटलीकरण, समाजशास्त्रीय अध्ययन, युवा विकास, डिजिटल शिक्षा, सामाजिक समावेशन। 
 


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