यह शोध आलेख महात्मा गांधी के संवाद दर्शन की 21वीं सदी में प्रासंगिकता की विवेचना करता है। आज का संचार तकनीक आधारित, तीव्र और वैश्विक है, किंतु उसमें मूल्य, संयम और करुणा का अभाव स्पष्ट है। सोशल मीडिया, राजनीतिक प्रचार और जन-संचार माध्यमों में जो संवाद उपस्थित है, वह प्रायः एकतरफा, आक्रामक और प्रचार-केंद्रित है। इस संदर्भ में गांधीवादी संवाद का नैतिक दृष्टिकोण - जो सत्य, अहिंसा, आत्मसंयम और सामाजिक उत्तरदायित्व पर आधारित है - आज और अधिक आवश्यक बन गया है। यह आलेख डिजिटल युग की चुनौतियों के बीच गांधीवादी संवाद को व्यवहारिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है।
शब्दकोशः गांधीवादी संचार, संवाद नैतिकता, डिजिटल सत्याग्रह, फेक न्यूज़, ट्रोल संस्कृति, नई तालीम, मीडिया नैतिकता, वैश्विक नेतृत्व।