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प्रारंभिक भारत में जैन शिक्षाः एक ऐतिहासिक रूपरेखा

अमृता जैन एवं डॉ. संध्या शर्मा (Amrita Jain & Dr. Sandhya Sharma)

जैन प्रणाली ने शिक्षा के अंतिम उद्देश्य के रूप में मुक्ति की सिफारिश की। जैन परंपरा के अनुसार मुक्ति दो प्रकार की होती है, जीवन मुक्ति और द्रव्य मुक्ति। इस प्रणाली में शिक्षा के सामाजिक, आर्थिक और आ/यात्मिक उद्देश्य पर जोर दिया गया। जैन शिक्षा का इतिहास मुख्य रूप से दक्षिण भारत का इतिहास है। जैनों ने कर्नाटक में शिक्षा के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शुरुआत में चौत्य, बसदी और मठ धार्मिक केंद्र थे, लेकिन बाद में यह शैक्षिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए। जैन धर्म ने मातृभाषा के मा/यम से सार्वभौमिक शिक्षा पर जोर दिया था। समय के साथ जैन धर्म ने सह-शिक्षा पर भी जोर दिया। पुरुषों और महिलाओं दोनों को मठों में रहने और जैन धर्मग्रंथों का अ/ययन करने की अनुमति थी। जैन शिक्षा को उस समय के कई शाही राजवंशों जैसे कदंब, गंग, बादामी के चालुक्य, राष्ट्रकूट और होयसल से बढ़ावा मिला।

शब्दकोशः जैन, शिक्षा, चौत्य, बसादि, मुक्ति।


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