ISO 9001:2015

दिव्यांगजनों के अधिकारों के संरक्षण में न्यायिक प्रणाली और प्रशासनिक ढांचे की भूमिका

सुनीता चन्देल, डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह एवं डॉ. रतन सिंह तोमर (Sunita Chandel, Dr. Pushpendra Singh & Dr. Ratan Singh Tomar)

वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में दिव्यांगजनों की स्थिति एवं उनके अधिकारों की रक्षा एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बन गया है। भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए हैं, किन्तु दिव्यांगजन अक्सर भेदभाव, उपेक्षा और सामाजिक विषमता का सामना करते आए हैं। इस शोध पत्र में दिव्यांगजनों के अधिकारों के संरक्षण में न्यायिक प्रणाली और प्रशासनिक ढांचे की भूमिका का विश्लेषण किया गया है। भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (त्च्ूक् ।बजए 2016) के लागू होने के बाद उनके अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक समावेशन के लिए नई व्यवस्थाएँ लागू की गई हैं। इस अध्ययन में सर्वाेच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों तथा प्रशासनिक तंत्र की नीतियों और योजनाओं का विवेचन किया गया है, जिनका उद्देश्य दिव्यांगजनों के साथ भेदभाव समाप्त कर उन्हें शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक सुविधाओं, एवं राजनीतिक-सामाजिक जीवन में समान अवसर प्रदान करना है। न्यायिक प्रणाली ने समय-समय पर अपने सक्रिय निर्णयों और निर्देशों के माध्यम से दिव्यांगजनों के हितों की रक्षा की है। वहीं, प्रशासनिक ढांचे ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, आरक्षण नीति, एवं जागरूकता अभियानों के माध्यम से इस वर्ग के सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त किया है। शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि न्यायपालिका और प्रशासनिक संस्थान, दोनों की भूमिका परस्पर सहयोगी और आवश्यक है। साथ ही, कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ भी चिन्हित की गई हैं, जैसे योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन, जन-जागरूकता का अभाव और भौतिक संरचनाओं में सुगम्यता की कमी। अतः यह शोध दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायिक और प्रशासनिक समन्वय को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
शब्दकोशः दिव्यांगजन, सामाजिक समावेशन, सशक्तिकरण, न्यायिक निर्णय, प्रशासनिक नीति। 
 


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