आज का विश्व बढ़ती जनसंख्या के कारण दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती समस्याओं का सामना कर रहा है। न केवल हमारा आर्थिक संतुलन बिगड़ रहा है बल्कि पर्यावरण संतुलन खतरे का निशान पार कर रहा है। यह तेजी से बढ़ती जनसंख्या का ही दुष्परिणाम है कि सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है जिससे प्राकृतिक एवं मानव जनित आपदाओं तथा जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियाँ सिर उठा रही हैं। विकास पथ पर आगे बढ़ने के लिए यह निहायत जरूरी है कि हम जनसंख्या नियंत्रण व परिवार नियोजन की दिशा में ठोस और सार्थक प्रयास करें। बड़ी जनसंख्या तक योजनाओं के लाभों का समान रूप से वितरण संभव नहीं हो पाता जिसकी वजह से हम गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से दशकों बाद भी उबर नहीं सके हैं। आज देश की सभी समस्याओं की जड़ में जनसंख्या-विस्फोट है। विश्व के सबसे अधिक गरीब और भूखे लोग भारत में हैं। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी हमारे देश में सबसे ज्यादा है। बेरोजगारी से देश के युवा परेशान हैं। युवा शक्ति में निरंतर तनाव बढ़ता जा रहा है जो देश में बढ़ते हुए अपराधों का एक सबसे बड़ा कारण है। बढ़ती हुई जनसंख्या चिंता का विषय हैं।
शब्दकोशः जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण संतुलन, मानव जनित आपदा, बेरोजगारी, कुपोषण।