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महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक स्थिरता

बाल चंद रेगर (Bal Chand Raiger)

महिला सशक्तिकरण के इस दौर में महिला पुरुष जाति की सोच में परिवर्तन की राह ढूंढ रही है। सशक्तिकरण एवं शिक्षा के बीच संबंध महिला का विकास शिक्षित होने में ही निहित है। तभी वह आर्थिक तौर पर सशक्त बन सकेगी। आधुनिकता की और अग्रसर करने में भी शिक्षा सहयोगी है। एक पुरुष जितना महत्वपूर्ण है एक महिला भी उतना ही महत्वपूर्ण है। महिलाओं के श्रम एवं प्रयत्नों से समाज की भलाई होती है। महिला बच्चे की प्रथम गुरु मानी  जाती है। मां द्वारा बच्चें की शारीरिक, आ/यात्मिक एवं मानसिक पालन होती है। इस पर भी महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारतवर्ष में महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर नैतिक रूप से अविश्वसनीय, आर्थिक रूप से बोझ एवं बौद्धिक रूप से कमजोर माना जाता है। गंभीर आ/यात्मिक गतिविधियों से उन्हे दूर ही रखा जाता है। पुरुषों को प्रभावी स्थान प्राप्त करने की शिक्षा दी जाती है जबकि स्त्रियों को सेवा भाव की। इस इकाई में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि इस पुरुषवादी एवं भौतिकवादी संस्कृति में महिलाओं के सामने किस प्रकार की चुनौतियां आती हैं। इसमें कुछ विषयों पर प्रस्ताव किए गए हैं जिन्हें अपनाकर महिलाएं अपनी शक्ति प्राप्त कर सकती हैं तथा समाज व परिवार में उन्हें पुरुषों को पूरक के रूप में उनके समान दर्जा प्राप्त कर सकती है। इसमें बताया गया है कि जो समाज महिलाओं का सम्मान करता है वह समाज आ/यात्मिक एवं मानवीय मूल्यों का भी सम्मान करता है। एक सशक्त महिला को खुद पर गर्व होता है और उसे अपने स्त्री होने पर खुशी होती है। स्थापित सांस्कृतिक वृत्ति के अनुरूप अनेक महिलाएं खुद को शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक एवं भावनात्मक रूप से पुरुषों की तुलना में अयोग्य मानती है और उन्हें लगता है कि वह सब कुछ नहीं कर सकती जो एक पुरुष कर सकता है। सांस्कृतिक स्थिरता सांस्कृतिक स्थिरता का तात्पर्य है कि लोग अपनी सांस्कृतिक मूल्य और परंपराओं के प्रति जागरूक और सम्मान के साथ अपने जीवन को अच्छे ढंग से जीने के लिए सशक्त हो तथा समाज में सक्रिय भूमिका निभा सके। जैसे-विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान -इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि हम सभी संस्कृतियों को समान रूप से महत्व दे और उनका सम्मान करें। सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण- इसके द्वारा लोगों को अपनी विरासत को सुरक्षित करने और आने वाली पीढियां तक इसे पहुंचाने में मदद करता है। संस्कृततिक विविधता को बढ़ावा -इसके द्वारा विभिन्न संस्कृतियों के बीच समझ विकसित करना तथा सह- अस्तित्व को बढ़ावा देना है। सामाजिक सांस्कृतिक असमानता:-सामाजिक सांस्कृतिक असमानता में लिंगानुपातमात्र मृत्यु दर कुपोषण शिक्षा लिंग आधारित हिंसा आदि का समावेश किया जाता है। सांस्कृतिक स्थिरता को सतत विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता हैंजो सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद करता है।  सांस्कृतिक  स्थिरता के अंतर्गत निम्न घटकों का अ/ययन किया जाता है। सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण सांस्कृतिक विविधता का सम्मान सांस्कृतिक  पहचान का विकास सांस्कृतिक आदान-प्रदान सांस्कृतिक विकास। संस्कृत स्थिरता को सतत विकास की दिशा में पूरी की जाने वाली एक पूर्व शर्त भी माना जा सकता है। हालांकि सतत् विकास के सामान्य ढांचे के भीतर सांस्कृतिक स्थिरता का सैद्धांतिक और वैचारिक समझ अस्पष्ट बनी हुई है। इसके परिणाम स्वरुप पर्यावरण आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक नीति में संस्कृति की भूमिका को गलत तरीके से लागू किया जाता है। 

शब्दकोशः सशक्तिकरण, आरक्षण, आयाम, पुनर्जागरण, पितृ सत्तात्मक, स्वायत्तता।


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