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गांधी, साम्प्रदायिक सहिष्णुता एवं भारतीय राजनीति

मंजू शर्मा (Manju Sharma)

गांधी जी के अनुसार ‘‘विभिन्न धर्म एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग है। जब हमारा लक्ष्य एक ही है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम उसकी प्राप्ति के लिए अलग-अलग रास्तों पर रहे है।2’’ अगर हम बात करे विभिन्न धर्मोे की तो गांधी जी ने ‘हिन्दू धर्म’ को सबसे अधिक सहिष्णु माना है वे कहते है कि इसमें कट्टरता का अभाव है जो मुझे बहुत पसन्द है। इससे इसके अनुयायियों को आत्माभिव्यक्ति के लिए अधिक अवसर मिलते है। हिन्दू धर्म एकांकी धर्म न होने के कारण इसके अनुयायी न सिर्फ अन्य सब धर्माे का आदर करते है बल्कि दूसरे धर्म में जो कुछ अच्छाई हो उसकी प्रशंसा भी कर सकते है। अहिंसा भी धर्मो में समान है लेकिन हिन्दू धर्म में वो सर्वोच्च रूम में प्रकट हुई है और उसका प्रयोग भी हुआ है। पुनर्जन्म की महान धारणा इस विश्वास का सीधा परिणाम है कि यह धर्म प्राणीमात्र की एकता और पवित्रता का व्यावहारिक प्रयोग है।3  ‘इस्लाम’ पर गांधी जी कहते है कि अवश्य ही मैं इस्लाम को उसी अर्थ में शांति का धर्म मानता हूँ, जिस अर्थ में ईसाई बौद्ध तथा हिन्दू धर्म शांति के धर्म है। बेशक मात्रा का फर्क है, परन्तु इन सबका उद्देश्य शांति ही है।4 भारत की राष्ट्रीय संस्कृति के लिए इस्लाम की विशेष देन तो यह है कि वह एक ईश्वर में शुद्ध विश्वास रखता है और जो लोग उसके दायरे के भीतर है उनके लिए व्यवहार में वह मानव-भ्रातृत्व के सत्य को लागू करता है। इन्हे मैं इस्लाम की दो विशेष देनें मानता हूँ। गांधी जी के अनुसार दूसरे धर्मावलम्बियों के प्रति सहिष्णुता, ईश्वर की अनिवार्य एकता में विश्वास तथा धर्म के प्र्रति एक ऐसा विकेकसम्मत दृष्टिकोण है कि व्यक्ति किसी अमानवीय और अविवेकपूर्ण धार्मिक विश्वास को अस्वीकार करने का साहस जुटा सके, व्यक्ति के लिए धार्मिक आचरण के जीवन्त मापदण्ड है।

शब्दकोशः साम्प्रदायिक सहिष्णुता, भारतीय राजनीति, कौमी एकता, साम्प्रदायिक सौहृाद्र, साम्प्रदायिक वैमनस्य।


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