श्रीमदभगवतगीता भारतीय साहित्य की अमरनिधि है। श्री शंकराचार्य से लेकर महात्मा गाँधी तक इस देष के महान विचारवेŸाा, समाजसुधारक, राजनीतिज्ञ, षिक्षक तथा दार्षनिक चिन्तक आदि सभी भगवतगीता की षिक्षाओं को जीवन का पथ प्रदर्षक मानते रहे हैं और सदियो से यह ग्रन्थ न केवल विद्धत समाज का अपितु सर्वसाधारण का भी ह्रदय की गहराईयों से पूज्नीय माननीय ग्रन्थ रहा है।
इतनी दीर्घकालीन परम्परा में इसका स्थान हमारे ह्रदयों में इतना ऊँचा इसलिए बन गया है क्योंकि इसमें सार्वभौम सिद्धान्तों का दिग्दर्षन है और उसका मन्तव्य गहन होते हुए भी जीवन का पथ प्रदर्षन स्पष्ट रूप से करता है।