महात्मा गाँधी मूल रूप में एक आ/यात्मिक सन्त थे, जिनका मूल उदेश्य धार्मिक जीवन व्यतीत करना था लेकिन गाँधीजी की धर्म सम्बन्धी धारणा लौकिक थी और वे मानवता की सेवा को ही वास्तविक धर्म मानते थे। महात्मा गाँधी के जीवनकाल की परिस्थितियाँ ऐसी थी कि उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करना पड़ा। स्वयं गाँधी जी के शब्दों में ‘‘उस समय तक मैं धार्मिक जीवन व्यतीत नहीं कर सकता था, जब तक कि मैं स्वयं को सम्पूर्ण मानवता के साथ एकीकृत न कर लेता और मैं यह उस समय तक नहीं कर सकता था, जब तक कि राजनीति मंे भाग नहीं लेता।’’ महात्मा गाँधी की राजनीतिक विचारधारा का मूल आधार राजनीति के प्रति उनका आ/यात्मिक दृष्टिकोण ही है। गाँधी जी धर्म और राजनीति को पृथक करने के पक्ष में नहीं थे। उनके शब्दों मंे ‘‘ मैं यदि राजनीति में भाग लेता हूँ तो इसका कारण राजनीति हमें एक सर्पिणी की भांति जकडे़ हुए है और हम चाहे कितना भी प्रयास क्यों न करें, उससे बाहर नहीं निकल सकते। मैं सर्पिणी से जूझना चाहता हूँ। मैं इस राजनीति में धर्म को प्रविष्ट करने का प्रयास करता हूँ।’’
शब्दकोशः अराजकतावदी, राजनीतिक विचारधारा, आदर्शवाद, आ/यात्मिक दृष्टिकोण, व्यक्तिवाद, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था, हिंसामूलक संगठन, विकेन्द्रीकरण, व्यवस्थापिका, कार्यकारिणी, न्यायपालिका, सर्वाधिकारवादी।
Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/7.1(II).7338