भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला नैतिकता, ईमानदारी और जनसेवा के सिद्धान्तों पर रखी गयी थी। लेकिन समय के साथ राजनीति में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। नैतिकता का अर्थ सत्य, ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ कर्तव्यों का पालन करना। आज के दौर में राजनीतिक नैतिकता की स्थिति चिंताजनक है, जहां सत्ता, धन और व्यक्तिगत लाभ के लिए नैतिक सिद्धांतों को दरकिनार किया जा रहा है। आज दुख इस बात का है कि मूल्यों, आदर्शों, विश्वास, नियम, आचार संहिता और संविधान आदि को टेढ़ी निगाह से देखा जा रहा है। मनुष्य अपनी जड़ों से उखड़ चुका है। वर्तमान में भारतीय राजनीतिक, आर्थिक एवं समाजिक व्यवस्था को खोखला करने में सबसे अधिक भूमिका निभा रहा है तो वह है- भ्रष्टाचार (करप्शन), जातिवाद (कास्टिज्म), और अपराधीकरण और इन सब की जड़ों में नैतिक पतन के कारण देश में राजनीति, आर्थिक एवं सामाजिक अंधकार सा छा गया है। राजनीति एवं राजनेता दोनों से जनता का विश्वास उठ गया है। मानव जीवन जीना दुभर हो गया है। राजनीति का अपराधीकरण और अपराधी का राजनीतिकरण एक सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं। राजनीति में सब जायज है या चलता है कि मानसिकता झकझोर देती है। इस लेख में राजनीति में नैतिकता के ह्रास के प्रमुख कारणों और इसके गम्भीर परिणामों पर विचार किया गया है।