सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम) ने भारत में डिजिटल लेन-देन को समर्थित करने, साइबर अपराधों को नियंत्रित करने और इलेक्ट्रॉनिक शासन (ई-गवर्नेंस) को सुगम बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया था। हालांकि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा के खतरों और डिजिटल शासन के द्रुत परिदृश्यों के कारण, यह अधिनियम अब कई गतिशील मामलों में अद्यतन नहीं हो रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता परमित साइबर अपराधों, डेटा सुरक्षा उल्लंघनों और स्वत- संचालित निर्णय लेने की तकनीकों ने इस कानून की प्रभावकारिता पर नए प्रश्न उठाए हैं। इस अ/ययन में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के विश्लेषण पर /यान दिया गया है और यह देखा गया है कि यह कितनी प्रचलित डिजिटल चुनौतियों के साथ सामर्थी है। शोध का मुख्य सवाल है कि क्या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम वर्तमान तकनीकी नवीनताओं के अनुरूप है, क्या इसमें साइबर सुरक्षा के प्रगतिशील उपायों की आवश्यकता है, और भारतीय डिजिटल शासन संरचना को मजबूत बनाने के लिए कौन-कौन से सुधार आवश्यक हैं। इस अ/ययन में सकारात्मक शोध पद्धति का उपयोग किया गया है, जिसमें मामले का अ/ययन, तुलनात्मक कानूनी विश्लेषण और साक्ष्य-आधारित शोध शामिल हैं।
शब्दकोशः सूचना प्रौद्योगिकी, ई-गवर्नेंस, साइबर अपराध, डेटा सुरक्षा, डिजिटल शासन।
Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/6.4(II).7126