किसी भी देश के विकास में औद्योगीकरण प्रक्रिया अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। समय-समय पर औद्योगीकरण की दिशा तथा गति को नियन्त्रित एवं नियमित करने, पूँजी विनियोग की मात्रा तथा दिषा को निर्धारित करने और आर्थिक विकास हेतु औद्योगिक योजनाओं को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए उनमें समयानुकुल संशोधन करने के लिए उनके प्रभावों का अध्ययन महत्वपूर्ण है। अतः इन सबके लिए यह आवश्यक है कि औद्योगीकरण से देश की अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव पड़ते हैं। तीव्र औद्योगीकरण की धुन में आर्थिक विकेन्द्रीकरण, क्षेत्रीय विकास तथा मानवीय मूल्य अदि सभी तथ्य उपेक्षित ही रह गये। इसका परिणाम यह हुआ कि एक और जहाँ सुख समृद्धि के ढेर लगे वहीं दूसरी ओर अपार जन-समूह अभावग्रस्त एवं अविकसित ही पड़ा रह गया। मियरडीथ ने इम विषय में लिखा है कि “इस स्थिति के उद्भव में प्रमुख हाथ नवीनतम प्राविधिक गतिविधियों एवं तीव्र औद्योगीकरण से प्राप्त लाभों के विभिन्न जन समूहों में एक न्यायसंगत वितरण व्यवस्था के आधार के अभाव का था। इसलिए हमें सारा औद्योगीकरण सोच-समझ कर और काफी सर्तक रहकर करना है। सेमीकॉन इंडिया प्रोगाम और अन्तर्राष्ट्रीय साझेदारी जैसी पहलों से भारत वैष्विक सेमीकंडक्टर हब बनने की दिषा में प्रगति कर रहा है। सेमीकंडक्टर विनिर्माण मी प्रतिभा विकास के लिए सरकार की 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की इस यात्रा के केन्द्र में है। राजस्थान भी सेमीकंडक्टर उद्योग में पहचान बना रहा है। भिवाड़ी में सहस सेमीकंडक्टर्स मेमोरी चिप्स का व्यावसायिक उत्पादन करने वाली पहली भारतीय कम्पनी बन गई है। अधिक निवेश उत्कीर्ण करने के लिए, 2001 में राज्य सरकार ने राजस्थान इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण नीति शुरु की, जो इलेक्ट्रोनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे का समर्थन प्रदान करती है। लेकिन प्रदेश को अपने प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है। खासकर सेमीकंडक्टर विनिर्माण का समर्थन करने के लिए एक कुशल कार्यबल विकसित करने की। आई टी और सॉफ्टवेयर विकास में स्थानीय प्रतिभा की कमी के कारण राजस्थान को फीसमी को आकर्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
शब्दकोशः औद्योगीकरण, पँूजी विनियोग, विकेन्द्रीकरण विनिर्माण, पूँजीगत आधार, आर्थिक विकास।