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म/वाचार्य और दयानन्द सरस्वती के ब्रह्म सम्बन्धी विचार

बनवारी लाल माली एवं डॉ. रीता सिंह

मध्वाचार्य और दयानन्द सरस्वती के ब्रह्म संबंधी विचार भारतीय दर्शन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, क्योंकि दोनों के दृष्टिकोण भिन्न होते हुए भी, उनके विचारों का उद्देष्य एक ही है-ईष्वर के स्वरूप और आत्मा के मोक्ष के मार्ग को समझाना। मध्वाचार्य ने द्वैतवाद (विभिन्नता का सिद्धांत) का प्रतिपादन किया, जिसमें भगवान और जीवात्मा के बीच स्पष्ट भेद माना गया। उनके अनुसार, भगवान (विष्णु) ही सृष्टि के रचनाकार, पालनकर्Ÿाा और संहारक हैं, और जीव आत्मा का अस्तित्व हमेषा ईष्वर के अधीन रहता है। भक्ति के मा/यम से जीव को भगवान के करीब लाया जा सकता है, और यही मोक्ष का मार्ग है। म/वाचार्य का यह दर्षन स्पष्ट रूप से भगवान और जीव के बीच भेद और भक्ति के महत्व को रेखांकित करता है। दूसरी ओर, दयानन्द सरस्वती ने वेदों के शुद्ध ज्ञान के मा/यम से ब्रह्म के निराकार रूप को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, ब्रह्म एक निराकार, अविनाशी और सर्वषक्तिमान सत्ता है, जो मूर्तियों या आस्थाओं के मा/यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने मूर्तिपूजा और अंधविष्वास का विरोध किया और ज्ञान को मोक्ष का मुख्य साधन बताया। उनका यह दृष्टिकोण यह स्पष्ट करता है कि ब्रह्म की सच्ची समझ केवल वेदों के अ/ययन और तर्कसंगत दृष्टिकोण से ही प्राप्त हो सकती है। इन दोनों आचार्यों के विचारों में भिन्नता होते हुए भी, उनका उद्देष्य समाज में धार्मिक जागरूकता और सुधार लाना था। म/यवाचार्य ने भक्ति के मा/यम से और दयानन्द ने ज्ञान के मा/यम से मानवता के उद्धार की दिषा में योगदान दिया। इन दोनों के विचार भारतीय समाज में धार्मिक और तात्विक विमर्ष को प्रोत्साहित करते हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। इस प्रकार, मध्वाचार्य और दयानन्द सरस्वती के ब्रह्म संबंधी विचारों का साराांश यह है कि दोनों ने भिन्न दृष्टिकोणों के माध्मय से आत्मा और ब्रह्म के संबंध को स्पष्ट किया, और समाज में सुधार के मा/यम से मानवता के मोक्ष की दिषा दिखाई।

शब्दकोशः ब्रह्म, आत्मज्ञान, अद्वैतवाद, द्वैतवाद, माया।
 


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