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एक राष्ट्र - एक चुनाव विश्लेषण व चुनौतियां

डॉ. लक्ष्मी नारायण (Dr. Laxmi Narayan)

भारत का लोकतांत्रिक ढांचा अपनी जीवंत चुनावी प्रक्रिया के आधार पर फल फूल रहा है और नागरिकों को हर स्तर पर शासन को सक्रिय रूप से आकार देने में सक्षम बनाता है। आजादी के बाद से वर्तमान तक 400 से अधिक चुनावों ने निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति भारत के चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है।
    एक राष्ट्र एक चुनाव एक ऐसी अवधारणा है जो भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में अधिक संगठित, कुशल व समावेशी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है, ताकि बार-बार चुनावों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं जैसे कि आर्थिक खर्च, प्रशासनिक बाधाएं और विकास कार्यों में रूकावट को दूर किया जा सके।
    आजादी के बाद शुरूआती वर्षों में 1952 से 1969 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे लेकिन समय के साथ राजनीतिक अस्थितरा और विधानसभाओं के भंग से यह परम्परा टूट गई। अब इस विचार को दोबारा लागू करने पर बहस तेज हो गई है। यह न केवल चुनावी प्रक्रिया को सरल बना सकता है बल्कि शासन में स्थिरता और विकास कार्यों को तेज गति देने में भी मददगार हो सकता है। हालांकि इस विचार को लागू करने के लिए कईं संवैधानिक, राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियां हैं।


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