झुंझुनूं कृषि मण्डियों में जो कृषि उपज बिकने को आते हैं। वे प्रायः अवर्गीकृत तथा अप्रमाणित होते हैं। बहुत से किसान जानबूझकर मिट्टी या अन्य ऐसी ही मिलावट करके उपज को बेचने के लिए ले आते हैं जिसके परिणामस्वरूप किसान को अपनी उपज का कम मूल्य मिलता है। मण्डियों में किसानों की उपज की ग्रेडिंग व्यवस्था ठीक नहीं है। बिना श्रेणीकरण के यह पता लगाने में कठिनाई होती है कि कौन सा धान या गेहूँ किस किस्म का है तथा उसका क्या मूल्य मिलेगा। श्रेणीकरण के पश्चात् भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर चिन्ह (डंतो) लगाने की व्यवस्था भी गल्ले के बाजारों में नहीं है। वर्तमान समयावधि में कृषि विपणन विभाग ने एगमार्क का चिन्ह कुछ वस्तुओं में लगाकर इसमें सुधार किया है। कृषि उपज के श्रेणीकरण तथा प्रमापीकरण के अभाव में भारतीय वस्तुओं का मान अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। निर्यात संवर्द्धन समिति 1949 ने भी सरकार का /यान निम्न कोटि (ुनंसपजल) के भारतीय निर्यातों की ओर आकर्षित किया था। समय-समय पर अनेक समितियां इस दोष की ओर इंगित करती हैं। पिछले कुछ वर्षों से सरकार ने इस ओर /यान दिया है। कृषि वस्तुओं के वर्गीकरण से कृषि वस्तुओं के खरीददार तथा किसान दोनों के बीच आपसी विश्वास बढ़ाने में सहायता मिलती है, उपभोक्ता को इच्छानुसार श्रेष्ठ कोटि की वस्तुएं मिल जाती हैं, और उत्पादक को उसकी उपज का उचित मूल्य। दोनों को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से भारत सरकार ने कृषि उत्पादक (वर्गीकरण एवं विपणन) अधिनियम 1937 पास किया जिसके अनुसार कृषि विपणन सलाहकार को अधिकार दिया गया है कि वह कृषि उत्पादों की विभिन्न किस्मों व प्रकारों का प्रतिमान निर्धारित करे और गुण (ुनंसपजल) सूचक वर्गानुकूल चिन्ह निश्चित करे। इसके अनुसार ऐसी भी व्यवस्था है कि निरीक्षण और विपणन निर्देशालय उपयुक्त व्यक्तियों और संगठिन संस्थाओं को निर्धारित प्रतिमान के आधार पर वर्गीकरण और चिन्हांकित करने का अधिकार प्रमाण पत्र जारी कर सके। इस प्रकार वर्गीकृत वस्तुओं पर एगमार्क लगाया जाता है।
शब्दकोशः कृषि उपज, विक्रय कला, एगमार्क, वर्गीकरण एवं विपणन।