भारतीय समाज में समाज के सहयोग के बिना कोई बदलाव नही होता था भारत की प्राचीन संस्कृत्ति और परम्पराएँ बहुत सुदृढ़ रही है, गाँव कभी भी गुलाम नही हुए सभी एक दुसरे के पूरक रहे है गांवों के लोग आपसी श्रम करके रास्ते, सार्वजनिक स्थलों को साफ करना और किसी जरूरतमंद की मदद करना ये सब सामूहिक होता रहा है। पहले बढई, नाई ,लोहार, सुनार, धोबी ये सभी समाज के महत्पूर्ण अंग रहे है, और सभी स्वाभिमान से काम करते थे यह रोजगार भी होता था और जीवन में मान-सम्मान भी था। परन्तु 1857 की लड़ाई में 1830 से 1857 के बीच में छोटे-छोटे राजाओं की सेनाएं होती थी, अंग्रेजो ने वो सेनाएं समाप्त की, जिससे ये सभी सैनिक बेकार हो गये और बेरोजगार भी हो गये और अंग्रेजी सरकार ने ऐसी संस्कृति को तैयार किया कि जो भी कार्य समाज में होगा वो सरकार ही करेगी और जिस कारण समाज की मानसिकता भी धीरे-धीरे प्रभावित हुई और सरकार के ऊपर हर काम के लिए निर्भरता होनी लगी। जिसके कारण भारतीय समाज में बड़ा परिवर्तन हुआ सरकार कोई भी रही हो समाज में सभी लोगों को मदद नही कर पाई हर व्यक्ति तक भी सरकार नही पहुँच पाई और समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग छुट गया वो हाशिये में आ गया जो आज भी अंतिम पायदान में सरकार की मदद का इंतज़ार कर रहा है। धीरे-धीरे लोक हितेषी व्यक्तियों ने व धार्मिक संस्थायों और राज्यों ने भी समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए सामाजिक सहयोग से कार्य करना शुरू किया।
शब्दकोशः सर्वोदय, पिछड़ापन, सहानुभूति, आत्मीयता, स्वाभिमानपूर्वक।