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भारत में 1975 का आंतरिक आपातकालः प्रभाव और परिणाम

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक  21 महीने की अवधि का भारत में आपातकाल घोषित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। देश के हालात आंतरीक व बाहरी रूप से खराब होते जा रहे थे, पड़ोसी देशो से सबध खराब थे वही देश मे 1969 में प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण व सितम्बर 1970 में राजभत्ते (प्रिवी पर्स) को समाप्तकरना, इस कारण राज परिवार, त्ैै व जनसंघ बदलावो के खिलाफ हो गए, प्रिवी पर्स का कुछ भाग राज परिवारो से त्ैै को भी मिलता था वहि उन दिनो देश मे पड़े अकाल, 1971 का भारत - पाकिस्तान युद्ध, 1974 मे चीन से युद्ध जिसमे भारत को हार का सामना, देश आर्थिक हालातो से जूझ रहा था, विपक्षीदल, जनसंघ, कांग्रेस विरोधीयो का बड़ा हिस्सा सड़कों पर था। वही त्ैै ने दूरी बना रखी थी । स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। आपातकाल की अवधि लोकतांत्रिक संस्थाओं की संभावित कमजोरी की एक कठोर याद दिलाती है। यह इस तरह के सत्तावादी उपायों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए शासन में सतर्कता और जवाबदेही के महत्व को रेखांकित करता है।

शब्दकोशः आपातकाल, राष्ट्रीयकरण, राजभत्ते, अलोकतांत्रिक, नागरिक अधिकार, प्रतिबंध।
 


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