मानव का जीवन हर अवस्था में दो स्तरों पर गतिमान होता रहता है। एक है आ/यात्मिक दूसरा है भौतिक। आ/यात्मिक दृष्टिकोण के अन्तर्गत् व्यक्ति संसार से निर्लिप्त रहते हुए चेतना के उच्चत्तम शिखर की ओर गतिमान रहता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार आत्मा जब तक अपने स्वरूप में स्थापित नहीं हो जाती, तब तक अज्ञान का आवरण चढ़ा होता हेै तथा मनोक्षेत्र में दबाव, तनाव एवं संघर्ष की स्थितियां विद्यमान रहती हैं।