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उच्च षिक्षा के बाजारीकरण के संबंध में एक समाजषास्त्रीय अ/ययन

भारत ऋग्वेद काल से लेकर मौर्य काल तक शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरू रहा है। हमें वेदों, ग्रंथों, एवं शास्त्रों के अ/ययन से यह ज्ञात होता है कि हमारे देश में शिक्षा अर्जन के विश्व प्रसिद्ध केंद्र जैसेः नांलदा, तक्षशिला आदि विश्वविद्यालय रहे है, जिनमें हजारों देश-विदेश के विद्याार्थी एवं शोधार्थी अ/ययन करते थे। इन शिक्षण संस्थानों में शिक्षा के साथ-साथ योगा, आ/यात्म, सामाजिक जीवन शैली आदि के बारे में भी बताया जाता था। लेकिन कालांतर में मुस्लिमhttps://updes.up.nic.in/विदेशी आक्रमण के कारण इन शिक्षा केन्द्रों को नष्ट कर दिया गया, अंग्रेजों द्वारा शिक्षा पर कोई /यान नहीं दिया गया। आज अधिकांश शिक्षण संस्थान मात्र धन अर्जन के केन्द्र बन गए है जहाँ पर शुल्क, बाहरी गतिविधियां, अनुदान आदि के नाम पर लाखों लाख रूपये लिए जा रहे हैं। माता-पिता बड़ी मुश्किल से पैसे की व्यवस्था कर इन संस्थानांे में अपने बच्चांे का प्रवेश करा पाते हैं कई बार शिक्षण संस्थानों, राजनैतिक, एवं भ्रष्ट अधिकारियों के मेल-जोल के कारण पेपर आउट, परीक्षा स्थगत आदि करा लिए जाते हैं। जिसके कारण भर्तियां निरस्त हो जाती है या न्यायालय में चली जाती है और सामान्य विद्यार्थी के कठिन मेहनत करने के बाद भी असफलता प्राप्त होती है। परिणाम स्वरूप योग्य विद्यार्थी को बेरोजगारी, मानसिक तनाव आदि का सामना करना पड़ता है कई बार तो विद्यार्थी मानसिक तनाव में आत्महत्या का रास्ता भी अपना लेते हैं। हाल ही मंे छब्त्ठ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2021 में 13089 विद्यार्थियांे ने आत्महत्या की। इस पत्र में इन समस्यों पर चर्चा की गई है। इनको दूर करने के उपाय सुझाये गए।

शब्दकोशः विद्यार्थी, शिक्षण संस्थान, भ्रष्टाचार।
 


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