मुद्राऐं ऐतिहासिक अ/ययन का अत्यधिक विश्वसनीय साधन मानी जाती है। प्राचीन काल से ही सिक्के आर्थिक व्यवस्था का आधार स्तम्भ माने जाते हैं। मानव जीवन की प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति से लेकर बडें व्यापार, निर्माण कार्यों, धार्मिक कार्यों आदि के लिए मुद्रा आवश्यक है। मुद्रा पर अंकित नाम, उपाधि, राजचिन्ह आदि किसी भी राजा की सम्प्रभुता के परिचायक तो होते ही हैं साथ ही मुद्रा की तिथि, टकसाल का नाम, कोई घटना विशेष, मुद्रा ढालने की तकनीक, धातु, आकार, वजन आदि भी इतिहास की सही जानकारी प्रदान करने में सहायक होते हैं। सिक्कों से प्राचीन समय की आर्थिक दशा के साथ-साथ उस समय की संस्कृति का भी ज्ञान होता है। मेवाड़ के सिक्कों पर अंकित श्री लेख पवित्र एवं सम्मान का सूचक है। सिक्कों पर अंकित प्रतीक चिन्ह यथा गाय, सूर्य, त्रिशूल सनातन धर्म के प्रतीक हैं तथा एकलिंगजी का मंदिर मेवाड़ के इष्टदेव और मेवाड़ में सुदृढ़ धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति को दर्शाता है। सिक्कों पर अंकित लेखों से उस समय की भाषा एवं लिपि का भी ज्ञान होता है। मेवाड़ में प्रमुख मुद्रा के रूप में इण्डोसेनियन प्रकार के सिक्के लम्बे समय तक चलन में रहे। ये सिक्के शुद्ध चांदी, तांबें एवं मिश्रित धातुओं के बने होते थे। गुहदत्त कालीन सिक्के मेवाड़ के इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अजमेर से बप्पा रावल का सोने का सिक्का प्राप्त हुआ था। जिस पर मेवाड़ के इष्टदेव एकलिंगजी की आकृति बनी है। मेवाड़ के अन्य रावल शासकों यथा भोज, शिलादित्य, बप्पा, शालिवाहन, शुचिवर्मा, रतनसिंह आदि के राजनैतिक इतिहास की जानकारी भी सिक्कों से प्राप्त होती है।
शब्दकोशः मुद्रा, ऐतिहासिक, धातु, राजचिन्ह, लेख, इष्टदेव, इण्डोसेनियन।