विश्व में जाति प्रथा किसी ना किसी रूप में विद्यमान है। भारतीय राजनीति के निर्धारक तत्वों में जाति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक सामान्य भारतीय अपना सब कुछ त्याग सकता है परन्तु अपनी जाति व्यवस्था एवं विरश्वास को नहीं त्याग सकता है। जाति व्यवस्था सभी धर्मों में हिन्दू समाज हो या मुस्लिम या ईसाई समाज में जाति व्यवस्था विद्यमान है। जाति प्रथा भारतीय हिन्दू समाज की प्रमुख विशेषताएं है। जाति प्रथा भारत में परम्परागत रूप में वैदिक काल से उत्पन्न माना जाता है। वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था के आधार पर जातियों का वर्गीकृत किया गया था, जिसमें ब्राह्मण-धार्मिक और वैदिक कार्यों का सम्पाद करते थे। क्षत्रियों का कार्य देश की रक्षा करना और शासन प्रबन्ध करना था। वैश्य- कृषि और वाणिज्य संभालते थे तथा शुद्रों को अन्य तीन वर्णों की सेवा करनी पड़ती थी। प्रारम्भ में जाति प्रथा में बन्धन कठोर नहीं थे। यह जन्म पर नहीं वरन् कर्म पर आधारित थी।