राजस्थान में लोक जीवन के विभिन्न रूपों की अभिव्यक्ति के लिए लोक नाट्य रचे गये है और उनका अपने तरीके से मंचन किया जाता है गीतों एवं नृत्य की प्रधानता के लिए नाट्यों में प्रतिकात्मक साज-सज्जा से ही पात्रों की पहचान हो जाती है। राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र मंे जीविका के लिए कठिन परिश्रम करने वाली जातियों मंे मनोरंजन का कार्य, नट, भाट आदि करते हैं। लोकनाट्य लोकनुरंजन का ही मात्र साधन नहीं होता अपितु वह लोकगत अर्जितानुभूतियों मंे से मानव के मूल अ/यात्मक अभिव्यक्ति का मा/यम भी है। प्रस्तुत शोध में रम्मत लोक नाटय कला के सगींत पक्ष को उजागर करने पर कार्य किया गया है । रम्मत पूरी तरह सगींतात्मक संवाद के रूप में अभिनीत होता है। रंगमच के दर्शक कथानक से परिचित होते है इसलिए कथा से प्राप्त मंनोरनजन इनका लक्ष्य नहीं होता बल्कि रसानुभूति से प्राप्त त्प्ति इनके लिए संतोष की बात होती है। रम्मत में पारम्परिक वाद्य नगाडा वह हारमोनियम की प्रधानता हैं रम्मत में सारी रचनात्मक ऊर्जा संगीत से ही अभिव्यकत होती है राजस्थान आंचल में आज भी रम्मत की लोक गायन शैलियों का मंचन होली से पूर्व कई शहरों में होता हैं जिसमें हड़ाऊ मैरी,अमर सिंह राठौड़ वह नौट्की शहजादी रम्मत का आयोजन बीकानेर व चितौड़गढ़ वह भीलवाड़ा शहर में आज भी उत्साह से किया जाता है।
शब्दकोशः रम्मत नगाडा लोकानुरंजन कथानक अभिव्यक्ति।