योग शब्द ‘‘युज’’ धातु से लिया गया है इसका अर्थ जोड़ एकीकरण संगति है गीता के अनुसार आत्मा में स्थित होकर सहज ही परमात्मा से मन को जोड़ना तथा परमात्मा से संस्पर्श करके आंतरिक सुख और अनंत आनंद में स्थित होना योग है।
दरअसल योग मन पर नियंत्रण रखने की प्रक्रिया है नागेन्द्र - ल्वहं पे जींज ेलेजमउपब बवदेबपवने चतवबमेे ूीपबी बंद बवउचतमेे जीम चतवबमेे व िउंदश्े हतवूजी हतमंजसल
प्राचीन भारत में योग के अन्तर्गत शरीर मन और आत्मा इन तीनों को सम्मिलित किया गया है ताकि व्यक्ति का शारीरिक मानसिक व आत्मिक विकास हो सके।
योग - शरीर के बाहरी और आंतरिक शुद्धि और आत्म तुष्टि है तथा योगदर्शन मानव जीवन की उच्चतम एवं आदर्श पराकाष्ठा है। शरीर और मन की स्थिरता से व्यक्ति योग की और अग्रसर होता है तथ प्रमोद रहित होकर मन को सयंम में रखकर कार्य करने से योग प्रारम्भ होता है शरीर, मन और आत्मा इन तीनों के संयोग का नाम योग है।
शब्दकोशः योग-मिलन, योगदर्शन, आंतरिक शुद्धि, आत्म तुष्टि, अमूल्य निधि।