राजस्थान की लोक कला ‘रम्मत‘ का सांगीतिक अ/ययन

प्रस्तुत शोध में ‘रम्मत‘ लोकनाट्य कला के संगीत पक्ष को उजागर करने पर कार्य किया गया है। रम्मत पूरी तरह संगीतात्मक संवाद के रूप में अभिनीत होता है। रंगमंच के दर्शकों को कथानक से परिचित होते है इसलिए कथा से प्राप्त मनोरंजन इनका लक्ष्य नही होता बल्कि रसानुभूति द्वारा प्राप्त तृप्ति इनके लिए संतोष की बात होती है। इसके पात्रों में स्त्री-पात्रों की भूमिका पुरुष पात्रों द्वारा ही स्त्री रूप धारण कर मंच पर मंचित की जाती है। लोकपरक अनुभूति और मनोरंजन का स्वस्हय स्वरूप इनमें उपलब्ध रहता है। इन प्रसंगों को किसी भी समय गावों में गम्मत‘ या मनोरंजन के अवसर पर देखा जा सकता है। उसके नायक की विशेषताओं को प्रगट करने की अपेक्षा उसके द्वारा खलनायक और अन्य पात्रों की विकृतिया अधिक अच्छे देश से प्रस्तुत की जाती है। रम्मत का मंच ‘मुक्तकाशी‘ खुला मंच होता है। रम्मत लोकनाट्य में लोकधुनों के अनुकरण की प्रवृति स्पष्ट रूप से झलकती है। ‘‘रम्मत करे जिको मंजा लूटे।‘‘ तो कौन फिर रम्मत करना और मजे लेना नही चाहेगा। यह रात भर चलकर सुबह सात बजे तक चलती है। यह सोद्देश्य होती है अंत में कुछ शिक्षा के रूप में अमिट प्रभाव डालती है। रम्मत में पारम्परिक वाड्य नगाड़ा के हारमोनियम की प्रधानता है रम्मत में सारी रचनात्मक ऊर्जा संगीत से ही अभिव्यक्त होती है राजस्थान अंचल में आज भी ‘रम्मत’ का मंचन होली से पूर्व कई शहरों में होता है जहाँ कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

शब्दकोशः गम्मत, नगाड़ा, मुक्ताकाशी, संगीतात्मक, कंथानक।


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