प्रस्तुत शोध में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का कृषि विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का आंकलन किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ा है, जिससे कृषि उत्पादन कम होना, अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं मिट्टी की गुणवत्ता में ह्यस जैसी समस्याऐं लगातार बढ़ती जा रही है। वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अनुसार ग्लोबल वािर्मंग का प्रमुख कारक सी.एफ.सी. गैसे, कार्बनडाईआक्साईड (ब्व्2), मिथैन (ब्भ्4), नाईट्रक्स ऑक्साइड (छव्) की मात्रा में वृद्धि से है। वहीं भूमण्डलीय तापक्रम वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से कृषि के अन्य घटकों की तरह मृदा भी प्रभावित हो रही है। मिट्टी के रासायनिक प्रयोग से जैविक कार्बन रहित होती जा रही है। जिससे जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वहीं औद्योगिकृत कृषि से भी मिट्टी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देने लगा है। ग्लोबल वार्मिंग से हमारी पृथ्वी का तापमान लगातार बढता जा रहा है। जिससे सागरों, महासागरों के जल स्तर में बढ़ोतरी दिखाई देने लगी है। जलवायु परिवर्तन से न केवल मानव जाति के वजूद को चुनौती मिल रही है। बल्कि जैविक, अजैविक कारकों पर भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव दृष्टि गोचर हो रहा है। आज सम्पूर्ण विश्व ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की चपेट में आ चुका है। जिसके लिए हमें एकीकृत एवं समग्र रूप से हमारी पृथ्वी को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिए।
शब्दकोशः ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, कृषि विकास, भारत बाढ़, सूखा, भूस्खलन, अर्थव्यवस्था, ग्रीनहाउस गैस, ग्लेशियर, समुद्री जल, जलवायु-सम्राट-कृषि, लेजर भूमि स्तर, शून्य जुताई प्रौद्योगिकी।