महाभारत के अनुशासन पर्व में उल्लेखित राजनीतिक सिद्धांतों व नैतिक मूल्यों की वर्तमान मानव जीवन में प्रासंगिकता

पंचम वेद महाभारत में वेदव्यास कहते हैं कि मनुष्य सृष्टि निर्माता ब्रह्मा की सर्वोत्तम कृति है उससे बढ़कर कोई नहीं है - “नहि मानुषात्श्रेष्ठतरं हिं किंचित्।“ किंतु मनुष्य की यह श्रेष्ठता उसके उत्तम गुणों व सिद्धांतों के कारण है, केवल शरीर धारण करने से वह श्रेष्ठ नहीं बन जाता। इसको महाभारत में कौरव-पांडवों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।     इस लेख में महाभारत के अनुशासन पर्व में उल्लिखित राजनीतिक सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों का प्रतिपादन करते हुए वर्तमान समय में उसकी आवश्यकता और महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा। इस लेख का तीन भागों में विभाजन किया गया है जिसमें प्रथम भाग राजनीतिक सिद्धांतों से संबंधित है और द्वितीय भाग नैतिक मूल्यों से संबंधित है। अंतिम भाग में निष्कर्ष लिखा गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में दो उपपर्व व 168 अध्याय हैं। इसमें भीष्म के साथ युधिष्ठिर का संवाद दिया गया है, भीष्म युधिष्ठिर को नाना प्रकार के तप, धर्म और दान की महिमा बताते हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, भीष्म से वार्तालाप करना, भीष्म का प्राण त्याग और युधिष्ठिर द्वारा अंतिम संस्कार किए जाने का वर्णन है।

शब्दकोशः अनुशासन पर्व, राजनीतिक सिद्धांत, नैतिक मूल्य, धर्म, दान, कर्म, प्रासंगिकता, मानव जीवन।


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