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हिन्दी साहित्य में संत दादूदयाल का योगदान: सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक पाखंडों का विरोध

भारतभूमि अनादिकाल से संतों एवं अ/यात्म के दिव्यपुरुषों की भूमि रहा है। यहां का कण-कण, अणु-अणु न जाने कितने संतों की साधना से आप्लावित रहा है। संतों की गहन तपस्या और साधना के परमाणुओं से अभिषिक्त यह माटी धन्य है और धन्य है यहां की हवाएं, जो तपस्वी एवं साधक शिखर-पुरुषों, ऋषियों और महर्षियों की साक्षी है। ऐसे ही एक महान संत थे दादू दयाल। वे कबीर, नानक और तुलसी जैसे संतों के समकालीन थे। वे अ/यात्म की सुदृढ़ परम्परा के संवाहक भी थे। भारत की उज्ज्वल गौरवमयी संत परंपरा में सर्वाधिक समर्पित एवं विनम्र संत थे। वे गुरुओं के गुरु थे, उनका फकड़पन और पुरुषार्थ, विनय और विवेक, साधना और संतता, समन्वय और सहअस्तित्व की विलक्षण विशेषताएं युग-युगों तक मानवता को प्रेरित करती रहेगी। निर्गुण भक्ति के मा/यम से समाज को दिशा देने वाले श्रेष्ठ समाज सुधारक, धर्मक्रांति के प्रेरक और परम संत को उनके जन्म दिवस पर न केवल भारतवासी बल्कि सम्पूर्ण मानवता उनके प्रति श्रद्धासुमन समर्पित कर गौरव की अनुभूति कर रहा हैं।

शब्दकोशः पुरुषार्थ, विनय, विवेक, साधना, संतता, समन्वय, सहअस्तित्व।


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