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राजस्थान विधानसभा चुनावों में जाति कारक की भूमिका का विश्लेषण

डॉ. मनोज कुमार भारी (Dr. Manoj Kumar Bhari)

राजस्थान के मारवाड़ का कुछ हिस्सा और शेखावाटी क्षेत्र जाट बहुल है, दक्षिणी राजस्थान गुर्जर और मीणा बहुल है. हाड़ौती क्षेत्र ब्राह्मण, वैश्य और जैन बहुल है. मत्स्य क्षेत्र की आबादी मिश्रित है, जबकि मध्य राजस्थान में मुस्लिम, मीणा, जाट और राजपूतों का प्रभाव है. मेवाड़-वागड़ क्षेत्र यानि उदयपुर संभाग आदिवासी बहुल क्षेत्र है. विधानसभा की 200 सीटों में से 107 सीटें ऐसी हैं, जिनमें एक या दो जातियों का ही प्रभुत्व रहा है। इनमें 75 सीटों पर तो एक ही जाति का दबदबा है। वहीं 32 सीटों पर दो जातियां का प्रभाव रहता है। अगर जातियों के दबदबे की बात करें तो जाट 21, ब्राह्मण 14, वैश्य 12, राजपूत 12, गुर्जर 5, रावत 3, यादव 3,पंजाबी और सिख दो दो और सिंधी एक सीट पर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। परन्तु जाति कारक सदैव प्रभावशाली नहीं रहता या उसमें भी उन्ही प्रभावशाली जातियों को अधिक तवज्जो देने के कारण उसी क्षेत्र की शेष अन्य छोटी जातियां विपरीत ध्रुवीकरण के माध्यम से सीट के दलगत समीकरण को परिवर्तित कर देती है।

जातिकृत वर्ग, महापंचायत, जातिगत-ऊब, चुनावी-नौटंकी, विपरीत-ध्रुवीकरण।


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