भारत में गठबंधन सरकारों का बदलता स्वरूप- एक विश्लेषणात्मक अ/ययन

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहां प्रत्येक पांच वर्ष की अवधि के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते है। इन चुनावों के मा/यम से जनता अपने प्रतिनिधि को चुनती है जो केन्द्र एवं राज्य स्तर पर सरकार का गठन करते हैं। भारतीय लोकतंत्र में बहुदलीय व्यवस्था का प्रावधान है, इसलिए कई बार किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता। इससे राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अतः इन परिस्थितियों में गठबंधन सरकार की स्थापना की जाती है। पिछले कुछ दशकों से भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकार का वर्चस्व रहा है। किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होने पर अन्य दलों की सहायता से मिली जुली सरकार बनाती है जिसे हम गठबंधन की सरकार के नाम से जानते है। गठबंधन सरकार में दो या दो से अधिक दल मिलकर सरकार बनाते हैं। जनता का किसी एक राजनीतिक दल में विश्वास नहीं होने पर मतदाता जब विकल्प की तलाश करते है तब गठबंधन की प्रक्रिया शुरू होती है। भारत जैसे विशाल देश में भारतीय समाज आज न केवल जाति, धर्म और गरीब-अमीर पर बंटा हुआ है बल्कि वर्ग, जीवनशैली, व्यवसाय आदि के आधार पर बंटा हुआ है। क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय दल प्रभावी होते है क्योंकि वे मतदाताओं के हितों के अनुकूल सिद्ध होते है। भारत में गठबंधन की सरकार राज्य स्तर पर प्रारम्भ हुई 1999 के चुनाव के बाद छोटे-छोटे दल की भरमार हो गई। क्षेत्रीय दल हावी होने लगे। जल्दी-जल्दी चुनाव होने के कारण देश पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। कभी-कभी गठबंधन सरकार का मंत्रीमण्डल दिशाहीन और मूल्यविहीन राजनीति को बढ़ावा देते हैं। लोकतंत्र की सफलता के लिए राजनीतिक दलों में सहनशीलता और कर्तव्य परायणता की आश्यकता है


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