शीतयुद्धोत्तर काल में भारत की विदेश नीति (सोवियत संघ के विघटन के पश्चात्)

विदेश नीति एक देश की अन्य देशों के बीच सम्बन्धों की एक कड़ी होती है, जिसमें द्विपक्षीय - बहुपक्षीय सम्बन्ध स्थापित किये जाते है। जैसे की भारत के प्राचीन विद्धान कौटिल्य ने पड़ोसी देशों के सम्बन्ध स्थापित करने के लिए पर-राष्ट्र सम्बन्धों में मंडल सिद्धान्त, षड्गुण्य नीति, सप्तांग सिद्धान्त, उपाय राजदूत व्यवस्था, गुप्तचर व्यवस्था का विवरण दिया। जिसका आज भी औचित्य है। स्वतंत्रता पश्चात् भारत में शीतयुद्ध काल में विदेश नीति का आधार गुटनिरपेक्षता की रही साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ से जितना सम्भव हो सका उतना सहयोग प्राप्त किया। भारत की स्थिति को मजबूत बनाया। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् भारत की गुटनिरपेक्षता, पंचशील की प्रासंगिकता को विद्यमान रखते हुए अनेक मुद्दों जैसे सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग, व्यापार एवं वाणिज्य मंे महत्ती भूमिका, आतंकवाद को समाप्त करना, पर्यावरण संरक्षण करना इत्यादि अनेक प्रकार के कार्यों को करवाने में अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया।

शब्दकोशः गुटनिरपेक्षता, शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व, पंचशील, निशस्त्रीकरण, उपनिवेशवाद, उन्मूलन, कूटनीति, शीत युद्ध, लुक ईस्ट नीति, भूमण्डलीकरण, बहुध्रुवीय, शक्ति संतुलन, आतंकवाद राजनय।


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