सतत विकास के लिये ऊर्जा संसाधन

विकास की दौड़ में शामिल अर्थव्यवस्थाओं में ऊर्जा की उच्च मांग रहती है। ऊर्जा की उच्च मांग की पूर्ति के लिये परंपरागत ऊर्जा स्रोत और नवीकरणीय ऊर्जा का विकल्प उपलब्ध है। वर्तमान में विश्व की लगातार बढ़ रही जनसंख्या के कारण ईंधन की लागत में भी वृद्धि हो रही है और इसके समानांतर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में भी निरंतर कमी देखी जा रही है। भविष्य की अपार संभावनाओं से युक्त नवीकरणीय ऊर्जा आज की आवश्यकता बनती जा रही है, तो वहीं दूसरी ओर परमाणु ऊर्जा से हुई आपदाओं के उदाहरण भी सामने आते रहते हैं। पर्यावरणविदों ने पारंपरिक ईंधन स्रोतों से हमारी निर्भरता को कम करने और उसके प्रतिस्थापन के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना शुरू किया। नवीकरणीय ऊर्जा प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है, इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जलशक्ति ऊर्जा और बायोमास के विभिन्न प्रकारों को सम्मिलित किया जाता है। दुनिया जिन ऊर्जा स्रोतों को जीवाश्म ईंधन के रूप में उपयोग करती आ रही है, वे एक सीमित संसाधन हैं। जीवाश्म ईंधन के विकास में लाखों साल लग जाते हैं, वहीं उनके अत्यधिक दोहन के कारण समय के साथ-साथ वे कम होते जाएंगे। नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों का जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण पर बहुत कम दुष्प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इनसे ग्रीन हाउस गैसें नहीं निकलती हैं। जीवाश्म ईंधन प्राप्त करने के लिये प्रायः पृथ्वी पर उन स्थानों में खनन अथवा ड्रिलिंग करने की आवश्यकता होती है जो पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील होते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा विकल्प पूर्णतया निःशुल्क तथा प्रचुरता में सरलता से उपलब्ध हैं। इन पर जीवाश्मीय ईंधनों, जैसे-तेल, गैस या नाभिक ईंधनों जैसे यूरेनियम आदि की तरह किसी भी देश या वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का एकाधिकार नहीं होता है। अतः इनकी आपूर्ति भी निर्बाध होती रहती है और नवीकरणीय ऊर्जा मूल्यप्रभावी बन जाती है। इस तरह नवीकरणीय ऊर्जा विकल्प विशुद्ध रूप से सरल, सर्वव्यापी और सम्पूर्ण विश्व में आसानी से उपलब्ध हैं, जिसमें ग्रामीण और सुदूर क्षेत्र भी शामिल हैं।

शब्दकोशः परंपरागत ऊर्जा स्रोत, ग्रामीण और सुदूर क्षेत्र, नवीकरणीय ऊर्जा, जीवाश्म ईंधन,ए ज्वारीय ऊर्जा।


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