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महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसाः एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण

डॉ. अखिलेश कुमार (Dr. Akhilesh Kumar)

हमारे देश में नारी को शक्ति श्रद्धा एवं आदर के भाव से देखा जाता है। वैदिक काल में चाहे महिलाओं की प्रस्थिति बुलंदियों पर थी लेकिन यहां महिलाएं लंबे समय तक यातना शोषण एवं अवमानना की शिकार भी रही है। आधुनिक युग में उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रसार के फलस्वरुप बढ़ती स्वच्छंदता ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अपराधों को आमंत्रित किया है। महिलाओं की स्थिति सभी समाजों में समान नहीं रही है। आदिम समाज से लेकर वर्तमान उत्तर आधुनिक समाज में भी महिला पुरुष असमानता, भेदभाव एवं महिला शोषण होता रहा है। महिला द्वारा अधीनता की मौन स्वीकृति भी महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का एक महत्वपूर्ण कारक है। महिलाओं के साथ शारीरिक एवं मानसिक रूप से किया गया अशोभनीय व्यवहार घरेलू हिंसा है। आज वर्तमान में वैश्वीकरण के दौर में नारी की मुश्किलें बढ़ते मशीनीकरण से नौकरियों में असुरक्षा, कम वेतन, परंपरागत हुनर की अनदेखी, विदेशी कंपनियों की मनमानी शर्तें, उनके समक्ष हमारे कानून की असमर्थता, बढ़ता भ्रष्टाचार आदि परिस्थितियों महिलाओं को न्याय दिलाने में असमर्थ है।


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