आ/यात्मिक पर्यटन के परिप्रेक्ष्य में आतिथ्य उद्योग की भूमिका (राजस्थान क्षेत्र के विशेष संदर्भ में)

पुरातन काल से भारत आ/यात्मिकता का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां प्रतिवर्ष कई विदेशी पर्यटक आ/यात्मिक शांति, आत्म खोज के लिए आते हैं। जिनमें विभिन्न धर्म व क्षेत्र के पर्यटक सम्मिलित होते हैं। विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ घरेलू पर्यटक भी आस्था, विश्वास व आ/यात्मिकता के लिए देशभर में भ्रमण करते हैं। आ/यात्मिक पर्यटन किसी धर्म विशेष से संबंधित ना होकर समस्त धर्मो का समन्वय है। इस पर्यटन में व्यक्ति आत्म शोधन व आत्म परिष्कार के लिए यात्रा करता है। दुनिया भर में यात्रियों की संख्या के साथ-साथ आ/यात्मिक पर्यटन का महत्व बढ़ गया है। आ/यात्मिक पर्यटन आ/यात्मिक कारणों से यात्रा करने का अभ्यास है जो कि एक व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संसाधनों में वृद्धि को दर्शाता है। राजस्थान सभी आ/यात्मिक संरचनाओं का एक संग्रह है। यहाँ आने वाले यात्रियों को तीर्थ यात्रा के दौरान यहां की लोक संस्कृति व लोक देवताओं के बारे में अवश्य जानना व समझना चाहिए। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कोटा, बूंदी, पुष्कर, अजमेर, अलवर, बीकानेर व डूंगरपुर में हिंदू रीति-रिवाजों और संस्कृतियों का विकास हुआ है। राजस्थान एक शानदार राज्य है जो की अपने गोरवशाली इतिहास, भव्य वास्तुकला और अपनी गजब की आतिथ्य सत्कार की परम्पराओं के साथ  विश्व के 17वें सबसे बड़े मरुस्थल के साथ दुनिया भर के पर्यटकों का स्वागत करता है। “पधारो मारे देश” से आतिथ्य सत्कार करने वाला राजस्थान अब पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नया प्रयास कर रहा है। पर्यटन राजस्थान की अर्थव्यवस्था में 20ः से भी अधिक योगदान देता है। भारत आने वाला हर तीसरा विदेशी पर्यटक राजस्थान की यात्रा करता है क्योंकि यह स्वर्ण त्रिभुज का हिस्सा है। राजस्थान में लगभग हर बड़े “हॉस्पिटैलिटी ब्रांड” की मौजूदगी है। इसके देशी व विदेशी सभी तरह के ब्रांड शामिल है। इस शोध पत्र में यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है कि आ/यात्मिक पर्यटन सामाजिक - आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।


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